तन्हाई ने मेरा साथ उस हाल में छोड़ा है,
जिस पल लगा मुझको गम-ए-आलम भी थोड़ा है|
क्या पूछिए, क्या माँग सकता हूँ खुदा से मैं,
जब मेरा खुदा वो है, जिसने दिल ये तोड़ा है|
क़ानून बन जाता है उनके मुँह से निकला लफ्ज़,
मैंने निबाहा था, उन्होंने खुद वो तोड़ा है|
मजबूर मैं, लाचार वो, लिल्लाह गला मेरा,
मैं घोंट के मर जाऊं, मगर फंदा भी चौड़ा है|
जिस वक़्त उम्मीदें जगी, तुझको थी पाने की,
क्यों मोड़ इस तकदीर का उसी रोज़ मोड़ा है?
मैं टूटता क्या ख़ाक 'अमन'? झुकता नहीं रब से,
तेरी कसम क्या कर गयी? मुझको ही तोड़ा है|
जिस पल लगा मुझको गम-ए-आलम भी थोड़ा है|
क्या पूछिए, क्या माँग सकता हूँ खुदा से मैं,
जब मेरा खुदा वो है, जिसने दिल ये तोड़ा है|
क़ानून बन जाता है उनके मुँह से निकला लफ्ज़,
मैंने निबाहा था, उन्होंने खुद वो तोड़ा है|
मजबूर मैं, लाचार वो, लिल्लाह गला मेरा,
मैं घोंट के मर जाऊं, मगर फंदा भी चौड़ा है|
जिस वक़्त उम्मीदें जगी, तुझको थी पाने की,
क्यों मोड़ इस तकदीर का उसी रोज़ मोड़ा है?
मैं टूटता क्या ख़ाक 'अमन'? झुकता नहीं रब से,
तेरी कसम क्या कर गयी? मुझको ही तोड़ा है|