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Friday, April 29, 2011

43) गुज़रे चार बरस यूँ

गुज़रे चार बरस यूँ, कुछ हासिल नहीं हुआ,
हुआ कौन गुनेहगार, गर मेरा दिल नहीं हुआ?

नया नजरिया रखता तो जिंदा रह पाता मैं,
यहाँ क़त्ल तो हुआ मेरा, पर कातिल नहीं हुआ|

पत्थर से इश्क कब से मैं, किये जा रहा था,
तुझ सा संगदिल, मुझ सा कभी बिस्मिल नहीं हुआ|

नाउम्मीदी भी न होती, गर इन्साफ मुझे मिलता,
ज़ालिम ज़माना मेरे लिए आदिल नहीं हुआ|

तुझे भूलना मुझको, नामुमकिन हो गया था,
जब मुझे भूलना तेरे लिए मुश्किल नहीं हुआ|

कम होंगे सुनाने वाले, वो किस्से भरथरी के,
मैं वफादार हूँ, क्या हुआ जो तिल नहीं हुआ?

दिल क्या लगा, फिर काम में दिल ही नहीं लगा,
कहते हैं कहने वाले, मुझ सा काहिल नहीं हुआ|

उन्हें इश्क हो जिस से, मैं बनूँ वो क्योंकर?
सिर्फ रेगिस्तान हुआ, मैं साहिल नहीं हुआ|

मियाद मुझे भी याद है, जीने दे कुछ पल तो,
नहीं आऊँगा गर तेरे काबिल नहीं हुआ|

उसने जनाजे में मुझे शामिल नहीं किया,
मेरे जनाजे में वो खुद शामिल नहीं हुआ|

तुझे दुनिया की फ़िक्र थी, मुझे मोहब्बत की,
मैं बेवफा ना हुआ, तू जाहिल नहीं हुआ|

कैसा नशा है मोहब्बत के इन मैखानों में,
वो क्या समझे जो इस में दाखिल नहीं हुआ|

दुनिया से डरना मेरी फितरत में नहीं 'अमन',
सब कुछ हुआ मैं, मगर बुजदिल नहीं हुआ|

Meanings: बरस-years हासिल-to get, advantage गुनेहगार-criminal
         हुआ कौन......नहीं हुआ-none but my heart is the sole criminal
         नजरिया-viewpoint कातिल-murderer संगदिल-stone hearted
         बिस्मिल-lover नाउम्मीदी-hopelessness आदिल-just, righteous
         नामुमकिन-impossible भरथरी-a character in Haryanvi folk tale
         of 'Kissa Pingla-Bharthari' काहिल-lazy क्योंकर-how साहिल-beach
         मियाद-time limit जनाज़ा-journey of coffin जाहिल-manner less मैखाना-bar
         दाखिल-enter फितरत-nature बुज़दिल-coward

Wednesday, April 27, 2011

42) हर चीज़ ज़हन से

हर चीज़ ज़हन से होकर है, पूरी रात आती-जाती
सिर्फ इक दर्द नहीं जाता, और इक नींद नहीं आती|

जला देना पढ़ कर मेरे, सारे कलाम, मेरी जान,
ये राज़ की बातें किसी से ज़ाहिर, की नहीं जाती|

अच्छा किया जो साकी ने बदल दी थी बोतल,
समां वरना कुछ और होता, जो थोड़ी भी चढ जाती|

लड़ेंगे क्यों बिसात पर, भला अब अपने मोहरे,
के तेरे हैं लड़की वाले, और मेरे हैं बाराती|

वो दिन और थे जब हर पल, था चर्चा-ए-इश्क,
अब उस दौर की एक याद भी, सही नहीं जाती|

मैं आया था उस रोज, सुनने तेरी एक हँसी,
पर मुझे देख, क्यूँ तेरे मुँह से आवाज़ नहीं आती?

मैं कर्ज़दार हूँ किसी, तेरी ही अपनी का,
जिसके बिना मुझे तेरी, खबर नहीं पाती|

हर अदा तेरी मुझे, पागल कर रही है,
भला एक बात तो हो जो तेरे, करीब नहीं लाती|

हर बार तेरी चली, क्या बुरा होता अगर,
मरने से पहले एक बार, मेरी भी चल जाती?

तखल्लुस ही कर लिया, मैंने तेरा नाम 'अमन',
अब नाम जुड़े रहेंगे, जब तक मौत नहीं आती|

Meanings: ज़हन-brain कलाम-poems ज़ाहिर-express साकी-bartender समां-environment
         बिसात-chessboard मोहरे-pieces चर्चा-discussion दौर-times सहना-tolerate
         उस रोज-that day तखल्लुस-pen name, nom de plume

41) तुम्हें चाहूँ तो हो गुनाह

तुम्हें चाहूँ तो हो गुनाह, पे सीने में वबा है, उसका क्या?
खत लिखूँ तो भी कुसूर, जो न लिखूँ तो भी खता|

इतनी जवान, के हर इंसान, तुझे चाहता है जान-ए-जाँ|
ऐसा हुस्न के सौ बरस बहार न हों तो क्या हुआ?

तू हसीन दिलकश परी, के हूर भी है परेशाँ,
और मुझे देखना तेरा पर्दा हटा-हटा के ज़रा-ज़रा|

प्यार पे बस नहीं मेरा, अब हो गया सो हो गया|
नाम तेरा लूँ कहाँ? समझ भी जा दिल की ज़ुबां|

बस एक बार तू मुझको, अपना बना ले दिलरुबा|
के कह गए हैं संत-फ़कीर, कर भला तो हो भला|

'अमन'-ए-उसूल-ए-मोहब्बत है कि सबसे प्यार करता जा|
के एक डाल पर दो गुल भी खिल सकते हैं बावफ़ा|

Meanings: गुनाह-crime, पे-but वबा-epidemic (here, revolution) खता-mistake
         हूर-a fictious angel considered to be maxima of beauty ज़रा-ज़रा-little bit
         जुबां-language उसूल-principle बावफ़ा-without being infidel

40) इंतज़ार-ए-जवाब ने

इंतज़ार-ए-जवाब ने मुझको पूरी रात जगाया,
एक सवाल मिला उनका, पर जवाब नहीं आया|

उस लड़की पे दिल आया तो बुरा क्या किया?
जिसकी हर अदा ने मुझे अपना कर दिखाया|

तड़पाने के अंदाज़ से, वो मुस्कुराकर चली गयी,
मेरे हाल पर ज़रा सा भी तरस नहीं आया|

उसकी चाल-ओ-चहक पर जाने कब से मुतासिर हूँ,
पर वक्त-ए-सूरत-ए-इज़हार उसे तनहा नहीं पाया|

अँधेरे में भी ज़र्द-ए-तस्वीर समझ आती है,
ढूँढने में वक्त यूँ ही, बेवजह नहीं गँवाया|

कुछ तो बात है उसकी सूरत-ओ-जवानी में,
जो बिगाड़ देती है सारा काम बना बनाया|

न "ना" में लब खोले ज़ालिम, न "हाँ" में हिले गर्दन,
क्या मेरा 'अमन'-ए-दिन-ओ-रात उसे रास नहीं आया?

Meanings: इंतज़ार-ए-जवाब-waiting for reply चाल-the way she walks
         चहक-the way she speaks मुतासिर-impressed सूरत-situation
         वक्त-ए-सूरत-ए-इज़हार-the time and situation of proposal
         पर वक्त-ए-...... नहीं पाया-She wasn't alone when I wanted to
          propose her ज़र्द-ए-तस्वीर-colors of painting सूरत-face
         जवानी-youth लब-lips ज़ालिम-cruel रास-acceptable

Tuesday, April 5, 2011

39) नहीं तेरे सिवा मेरी

नहीं तेरे सिवा मेरी वजह-ए-कसीदा कोई और|
होगा कौन मुझ सा खुश-ओ-संजीदा कोई और?

न कोई है मुझ सा, न कोई और होता था|
मेरा अक्स तुझको दिखता है, सो  वो होगा कोई और|

मेरी फितरत जुदा है हर इंसान-ओ-रूहे दुनिया से|
न बदलता होगा मेरी तरह यूँ, जुबान-ओ-सदा कोई और|

सौ बार जुदा हुआ मैं, सो हर बार दुहाई है|
इस कदर न करे मुझे, खुद से जुदा कोई और|

क्यों बदल रहा है खुद को, देख इस दुनिया की तासीर,
तू खुद है तू, तुझ पर नहीं, जमती अदा कोई और|

किस बात पे इतराती है 'अमन', गर मैं न होता तो,
तुझे चाहता भी कोई और, तेरा होता खुदा कोई और|

Meanings: क़सीदा-a collection of poems, नहीं तेरे .... कोई और-you are the sole inspiration
          for all the poems I have ever created. संजीदा-serious खुश-ओ-संजीदा-happy
          as well as serious simultaneously, अक्स-image फितरत-nature जुदा-different
          इंसान-ओ-रूह-every living and dead ज़ुबान-ओ-सदा-language and voice
          दुहाई-request while crying इस कदर-in this way जुदा-apart तासीर-nature
         जमना-to suit इतराना-over proud गर-if