Pages

Wednesday, November 30, 2011

49) तुझे याद कर के

जब गला भर आता है ये, तुझे याद कर के,
जब शमा बुझाता है परवाना तुझे याद कर के,
तब करूँ तो मैं क्या करूँ, ये कैसी कसम दी है?
के रो भी नहीं सकता मैं अब, तुझे याद कर के|

हलक तक आकर लफ़्ज़, फँस कर रह जाते हैं,
गर जुबान पर आये तो ये, आँसू बन जाते हैं,
इसीलिए, एक घूँट में, पी गया एहसास,
ताकि आँसू ना पीने पड़ें अब, तुझे याद कर के|

दोस्तों ने बनाया मजाक, मेरी मोहब्बत का,
तूने भी उड़ाया मजाक, मेरी मोहब्बत का,
किस-किस को सुनाया मजाक, मेरी मोहब्बत का,
और जिया उसी मोहब्बत के लिए मैं, तुझे याद कर के|

आज़ाद कर दे मुझको, तुझसे मिलने आऊँगा,
वो कसम हटा दे वरना अमन मैं, कुछ कर जाऊंगा,
ना मिला तो जान मैं सच-मच मर जाऊंगा,
वैसे भी मरना ही है अब, तुझे याद कर के|

Monday, November 7, 2011

48) ना सही


तेरे साथ बिताए थे, जो हसीन पल मैंने हज़ार,
अब जिंदगी तेरे बिना जीनी पड़े तो भी सही,

तुझे मुझ से नफरत जो हो गई है इस क़दर,
के भूल गयी है बरसों की अपनी मोहब्बत को सही,

सीने में सजा के रखूंगा मैं तेरे प्यार का मदिर,
मूरत तेरी हो सही, जो ना हुई तो ना सही,

तू भी मुझ को याद कर के तड़पा करेगी ज़रा ज़रा,
और पोंछेगा तेरे आँसू, जो मैं नहीं तो कोई और सही,

तड़प मुझे भी है, तेरी जुदाई के गम की कसम,
पर जिंदगी है इस तरह तो जिंदगी यूं ही सही,

अपनी मोहब्बत कभी भी अपना नगमा बन पाई नहीं,
ये बन जाए 'अमन' की एक शायरी तो वही सही....

(Dedicated to one of my best friends who ...)