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Monday, December 3, 2012

51) ये अदाएँ हैं मेरी

किसी और के चेहरे पे कहाँ थमती हैं?
ये अदाएँ हैं मेरी, सिर्फ़ मुझी पे जमती हैं |

जिस से करता ही रहता था मैं पहरों बातें,
वो पलट कर कभी, जवाब कोई नहीं देती,
सारी दुनिया से छुप कर, मैं जिस से मिलता था,
अब वो सूखे हुए, गुलाब कोई नहीं देती,
 खतों को जोड़ कर, किताबें बना डाली थी कई,
वो मुझे उन में से, किताब कोई नहीं देती,
उसकी साँसे मेरी बाहों में ही सहमती हैं,
ये अदाएँ हैं मेरी, सिर्फ़ मुझी पे जमती हैं |

जो जवानी मेरी उस शख्स पे निछावर थी,
वो असल में मेरे इस मुल्क की अमानत हो,
मैं भटकता रहा, अब जा कर समझ में आया है,
पहले है मुल्क मेरा, और फिर सनम की चाहत हो,
तेरी बिंदिया, तेरे होठों की इबादत की है,
अब ज़रा मादरे-वतन की भी इबादत हो,
किस के जिस्म में भला खुशबू-ए-वतन रमती हैं?
ये अदाएँ हैं मेरी, सिर्फ़ मुझी पे जमती हैं |

50) बेवफा

वो मेरी जान है, उसके बिना रहूँ कैसे?
उसे बेवफ़ा कहूँ तो कहूँ कैसे?

जो मेरे सीने से लग के सो जाती थी,
लब छूते ही जो पागल सी हो जाती थी,
भर के बाहों में मुझे खुद ही खो जाती थी,
उसे बेवफ़ा कहूँ तो कहूँ कैसे?

जो सदा करती थी हर हाल में ख़याल मेरा,
जिसकी अंगड़ाईयाँ करती थी बुरा हाल मेरा,
वो रखा करती थी संभाल के रुमाल मेरा,
उसे बेवफ़ा कहूँ तो कहूँ कैसे?

कान खाती थी वो, ढेर सी बातें करती,
मैंने चूमा जो गर्दन को तो आहें भारती,
मैं उस पे मरता था, वो भी मुझ पर मरती,
उसे बेवफ़ा कहूँ तो कहूँ कैसे?

रख के मेरे पैर पे वो पैर, खड़ी होती थी,
थी वो छोटी सी, मुझे पे चढ़ के बड़ी होती थी,
गम जो होता तो चिपक के मुझ से, रोती थी,
उसे बेवफ़ा कहूँ तो कहूँ कैसे?

एक दिन अचानक वो मुझे छोड़ गई,
बहुत रोया मैं, दिल वो मेरा तोड़ गई,
और वो भी मेरी यादों में रोती है,
तकिये को मेरा सीना समझ के सोती है,
और कहती भी नहीं, गम ये मैं सहूँ कैसे?
उसे बेवफ़ा कहूँ तो कहूँ कैसे?