(Another poem in trash. Wrote it while I was in Vipassana)
साँस चलती रहती है, चाहे याद न रहता हो,
हर लम्हा है तू यादों में, बताता नहीं हूँ मैं |
जो गिर जाऊं मैं नज़रों से, मुझे कौन उठाएगा?
गिरी हुई चीज़ों को खुद, उठता नहीं हूँ मैं |
कैसे मन की जानें यहाँ?भगवान नहीं कोई,
तो कैसे मैं भी जानूंगा ? विधाता नहीं हूँ मैं |
कब से प्यार बाँटा है, जाने कब तक बांटूंगा ?
मोहब्बत को खुद के लिए, बचाता नहीं हूँ मैं |
छीना क्यूँ दिल का सुकून, और पागल किया मुझे ?
नफरतों के फूल तो, उगता नहीं हूँ मैं |
मेरे मन को क्यूँ इतनी, चोट लगी 'अमन' ?
किसी के दिल को यूँ कभी, दुखाता नहीं हूँ मैं |
साँस चलती रहती है, चाहे याद न रहता हो,
हर लम्हा है तू यादों में, बताता नहीं हूँ मैं |
जो गिर जाऊं मैं नज़रों से, मुझे कौन उठाएगा?
गिरी हुई चीज़ों को खुद, उठता नहीं हूँ मैं |
कैसे मन की जानें यहाँ?भगवान नहीं कोई,
तो कैसे मैं भी जानूंगा ? विधाता नहीं हूँ मैं |
कब से प्यार बाँटा है, जाने कब तक बांटूंगा ?
मोहब्बत को खुद के लिए, बचाता नहीं हूँ मैं |
छीना क्यूँ दिल का सुकून, और पागल किया मुझे ?
नफरतों के फूल तो, उगता नहीं हूँ मैं |
मेरे मन को क्यूँ इतनी, चोट लगी 'अमन' ?
किसी के दिल को यूँ कभी, दुखाता नहीं हूँ मैं |