(Another old poem found in trash)
उन्हें देखना जो था, मेरी नज़र उठ गई,
पर वो थी घुटन में, थोड़ी और घुट गई |
मेरी हसरतों में उसके आँसू तो न थे,
इसलिए, उसे देखने की आदत भी छुट गई |
उसे पहचान चाहिए थी, मैंने पहचान दिलाई है,
फिर प्यार की कैसी मैंने, सज़ा पाई है ?
और सजा भी क्या है? न ज़ख्म है न खून,
है जिस्म ज्यों का त्यों, पर रूह लुट गई |
उसका हर गम मुझे अपना बनाना था,
दिल दरिया था, हर राज़ इस में छुपाना था |
पर जाने उसे क्यूँ गैर, ज्यादा करीब लगे ?
रक़ीब लगे अपने, और हम ग़रीब लगे |
हर मसला अपना क्यूँ गैरों को सुनाया हाय !
किस्मत में खिलना था, फिर भी मुरझाया हाय !
वो तोड़ के सपने, फोड़ के मेरे सपनों के महल,
मुझे मनाना तो दूर, देखो खुद ही रूठ गई |
उन्हें देखना जो था, मेरी नज़र उठ गई,
पर वो थी घुटन में, थोड़ी और घुट गई |
मेरी हसरतों में उसके आँसू तो न थे,
इसलिए, उसे देखने की आदत भी छुट गई |
उसे पहचान चाहिए थी, मैंने पहचान दिलाई है,
फिर प्यार की कैसी मैंने, सज़ा पाई है ?
और सजा भी क्या है? न ज़ख्म है न खून,
है जिस्म ज्यों का त्यों, पर रूह लुट गई |
उसका हर गम मुझे अपना बनाना था,
दिल दरिया था, हर राज़ इस में छुपाना था |
पर जाने उसे क्यूँ गैर, ज्यादा करीब लगे ?
रक़ीब लगे अपने, और हम ग़रीब लगे |
हर मसला अपना क्यूँ गैरों को सुनाया हाय !
किस्मत में खिलना था, फिर भी मुरझाया हाय !
वो तोड़ के सपने, फोड़ के मेरे सपनों के महल,
मुझे मनाना तो दूर, देखो खुद ही रूठ गई |
Jab na likha tab bhi likhta chala gaya tujhe bhulne ki jidd par tujhse or jUdta. Chala gaya…...........ust a chala gaya........
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